ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंशराय बच्चन



सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंशराय बच्चन ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंशराय बच्चन Reviewed by Dakhni on January 17, 2018 Rating: 5

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