है तो है – दीप्ति मिश्र



वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों रिवाजों से बगावत है तो है
सच को मैंने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
गर ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है
कब कहा मैंने कि वो मिल जाए मुझको, मैं उसे,
ग़ैर ना हो जाए वो बस इतनी हसरत है तो है
जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या ख़ता
रात भर जलना–जलाना उसकी किस्मत है तो है
दोस्त बन कर दुश्मनों–सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फितरत है तो है
दूर थे और दूर हैं हरदम जमीनो–आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है
~दीप्ति मिश्र
है तो है – दीप्ति मिश्र है तो है – दीप्ति मिश्र Reviewed by Dakhni on January 10, 2018 Rating: 5

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