कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे - गोपाल दास नीरज
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। ...
Dakhni -
July 20, 2018
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे - गोपाल दास नीरज
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July 20, 2018
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