गुनियाँ काँच देखबा लागी – दुर्गादान सिंह गौड़



एक बार दन दस दस बेराँ अली गली का लेवै हेरा
लुक छुप घर कै ऊणे-खूणे घूँघट खाँच देखबा लागी
गुनियाँ काँच देखबा लागी।।
कोई कहे ऊमर को ओगण कोई कहे जोबण की मार
कोई कहे टोली की हिरणीं कोई- चोपड़ म्हैली सार
कोई बतावै कामणगाली अर कोई समझै नखरैल
कोई कहे चम्पा सी पाँखड़ी कोई बतावे नागरबेल
लोग बाग जे जे बतलावै सबकी साँच देखबा लागी।।
भावज दाव्याँ फिश्रै छांवली दादी नै चालै छै सूण
अली सली ज्ये सुणले गांव में बलज्या केई मरकल्या खून
भरी जवानी अर यो जमानो बढतो जोखम दूँणा दूँण
खाड लियो रै नैणाँ सूँ काजल असी अचपली प्रीत की जूँण
पढ़वा की पोथी में कोई को कागद बाँच देखबा लागी।।
कतनी लहर पड़ै साड़ी पै कतना कम्मर पड़ता बाउ
पाँवाँ बीचै पड़े भँवर सवे लूम रई लावण कै बा’ल
नथ प्हर्यां सूँ भर्यो भर्यो सो लागैगो यो बाँवो गाल
मन में जोड़ मिजान लगावै आंबा की सी बड़कल डाल
तन पै देखै घी जमतो सो मन में आँच देखबा लागी।।
बार बार चूड़याँ ईं टालै बार बार माथा पै हाथ
मरदाँ सर की खोड़ करै छै खुद की गोठणियाँ कै साथ
खुद ही खुद ने सह् देवै अर खुदई खुद सूँ खावै मात
तोता मैना सो दिन माँगै- ढोला मरवण की सी रात
काची केंरी काटता सुवा की चोँच देखबा लागी।।
गुनियाँ काँच देखबा लागी….
~ दुर्गादान सिंह गौड़
गुनियाँ काँच देखबा लागी – दुर्गादान सिंह गौड़ गुनियाँ काँच देखबा लागी – दुर्गादान सिंह गौड़ Reviewed by Dakhni on January 10, 2018 Rating: 5

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