क्या तुम लौटा सकती हो ? – विमल कुमार


क्या तुम लौटा सकती हो
मेरा चाँद
जो तुम्हारे लिए
मैं धरती पर ले आया था
एक दिन

वह नीला आसमान
लौटा सकती हो
जिस पर तुम उड़ती रही
पंख फैलाकर इन दिनों तक

लौटा सकती हो
वे चिन्ताएँ
वह ख़याल
जो रखा मैंने हर पल
तुम्हारे दुख भरे दिनों में

तो फिर क्यों लौटा रही हो
वह क़िताब
वह ख़त
वह ख़याल
क्या तुम लौटा सकती हो
वह नींद
वह ख़्वाब
जो आया था
चुपके से
एक दिन तुम्हारे सिरहाने
लौटा सकती हो
वह रास्ता
जिस पर तुम मेरे साथ चली थी
वह सीढ़ियाँ
जिस पर बैठकर
तुमने कम किया था
अपना दुख मेरे साथ
पाई थी
तुमने कोई ख़ुशी
मुझसे मिलकर

मैं जानता हूँ
तुम नहीं लौटा सकती हो
नहीं लौटा सकती हो
तुम मेरा स्पर्श
मेरी छाँह
न मेरे बदन की ख़ुशबू
जो तुम्हारे भीतर समा गई थी एक दिन बहुत गहरे

समुद्र की वे लहरें
और वे पुल
तुम नहीं लौटा सकती हो
जिन्होंने कभी मचा दी थी खलबली
तुम्हारे भीतर

तो फिर क्यों लौटा रही हो
यह फाइल
यह नक्शा
यह फ़ोटो अलबम
यह पैकेट
जब डूबती हुई शाम नहीं लौटाई जा सकती
नहीं लौटाई जा सकती
वह सुबह
तो क्यों लौटा रही हो वे चीज़ें
जो ख़रीदी जाती हैं पैसे से हर बार

तुम मेरे आँसू नहीं लौटा सकती
आत्मा की मेरी कराह
मेरी बेचैनी
तो कभी नहीं

नहीं लौटा सकती
जो मैंने तुम्हें अपनी क़िताबों के साथ दी थी मैंने
क्योंकि ये चीज़ें
कभी बेची नहीं जाती
तुम यह सब लौटाकर
एक सच को
झूठलाने की कोशिश मत करो

एक मनुष्य ने अगर
गुज़ारा है किसी मनुष्य के साथ
कोई ख़ूबसूरत क्षण
तो वह किसी भी सूरत में
नहीं लौटाया जा सकता

तुम कितना भी नाराज़ हो जाओ
पर तुम मेरा प्यार
नहीं लौटा सकती हो
वह तुम्हारी स्मृति में
पड़ा रहेगा महफ़ूज़
जैसे मनुष्य की स्मृति में
पड़ा रहती हैं
नदियाँ और तितलियाँ
फूल और चाँद । 
~विमल कुमार 
क्या तुम लौटा सकती हो ? – विमल कुमार क्या तुम लौटा सकती हो ? – विमल कुमार Reviewed by Dakhni on January 10, 2018 Rating: 5

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